चने की प्रमुख बीमारीयो को कैसे रोके जाने :-
उकठा रोग :- यह एक मृदोढ़ व बीजोढ़ रोग हैं ,जो की फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम नामक फफूंद से होती है।
बीमारी के लक्षण :- इस फफूंद के कवकजाल पौधों की जाइलम एवं फ्लोएम में एकत्रित होते रहते है, जिससे जल व खनिज लवणों का ऊपर चढ़ना बंद हो जाता है,इस रोग के कारण पौधे की टहनियाँ सूखे ने लगती हैं ,तथा पत्तियाँ हल्की कत्थाई या बैंगनी रंग की हो जाती है,जो बाद में धीरे -धीरे नीली होने लगती हैं। रोग पौधे की जड़े बाहर से पूर्णत: स्वस्थ दिखाई देती है, लेकिन बीज से चीरकर देखने पर जाइलम एवम फ्लोएम व मज्जा कोशिकाएँ भुरी दिखाई देती है ,रोग के उग्र रूप धारण करने पर जड़े सड़ जाती है , और सम्पूर्ण पौधा मुरझा जाता है ,जाइलम एवं फ्लोएम में रहकर फंगस कभी कभी विषैले पदार्थ भी निकलते है ,जिससे सम्पूर्ण पौधे में विषावक्ता उत्पन हो जाती है.
संक्रमण :- रोगजनक फसल के अवशेषो व बीजों में 3 -5 साल तक जीवित रहते है ,तथा बुवाई करने पर फफूंद के बीजाणु फसल साथ -साथ उगने लगते है तथा पौधे की महीन जड़ो को बेधकर पौधों में प्रवेश करते है.
नियंत्रण :- इस रोग से प्रभावित बीज को बुवाई के काम में न लें, रोगी पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। प्रतिरोध एवं उकठा अवरोधी किस्मों को अपनाए जैसे – जे. जी.- 11 विशाल , जे -जी. 74 ,जे.जी.- 130 ,जाकी 9218. रासयनिक दवा ,जैविक फफूंद से बीज उपचार करें। बुवाई से पहले प्रति हैक्टर 100 किलोग्राम . ट्राइकोडर्मा मिलाकर खेत में छिड़क कर सिचाई करे.कृषि विभाग में जैविक फफूंद ट्राइकोडर्मा, रासायनिक बीजोपचार दवा 50 प्रतिशत अनुदान पर मिलती है.
शुष्क मूल विगलन रोग :- इस रोग राइजोक्टोनिया बटाटीकोला नामक फफूंद से होता है ,रोग से प्राभवित पोधे पीले ,पढ़कर सुख जाते है ,और सम्पूर्ण खेत में बिखरे दिखाई देते है ,मरी हुई जड़ शुष्क व कड़ी हो जाती है.जिसकी ऊपरी छाल पर दरारे पड़ जाती है ,पौधे के जमीन वाले भाग को लम्बाई में फाड़ने पर छोटे -छोटे कोयले के काणों के समान छोटे स्कलेरोशिया दिखाई देते है। 2 प्रतिशत डी एपी गलघोल के छिड़काव की सलाह कृषकों को दें। घंटियों में दाना भरते समय दूसरी सिंचाई का प्रबंध किया जाये। किट नियंत्रण एवम किट व्याधियो को पहचान एवं उनके नियंत्रण के बारे में बताया जाए। किट व्याधियो के नियंत्रण करने में एकीकृत नाशी जीव प्रबधंन की विधियों के बारे में बताया जाये।