महुआ एक बहु उपयोगी वृक्ष है, इसके ओषधिय गुणो की चर्चा आयुर्वेद में की गयी है,इसमें शीतकारी माना गया है ,जो पीत्त को नियंत्रित रकता है, महुआ फूलों के ताजे रस का उपयोग त्वचा ,सिरदर्द और आँखों की बीमारियों में होता है, महुआ के फूल ,फल ,छाल आदि का कई अन्य तरह की ओषधिय के रूप में भी उपयोग किया जाता है। यह घना और छायादार पेड़ होता। गोंड और कुछ अन्य आदिवासी जनजातियो इसे पवित्र पेड़ मानती है। और पूजा करती है।
महुआ के खुशनुमा पिले फूल अप्रैल – मई में खिलते है,और भीनी सुगंध से परिवेश को सराबोर कर देते है,इन फूल में काफी मिठास होती है,बच्चे इन्हे बीनकर खाते है,मवेशी भी इन्हे चावसे खाते है,इनमे शर्करा तो होती है. साथ ही विटामिन सी ,प्रोटीन ,कैल्शियम ,फॉस्फोरस और वसा भी होता है,फूलो की सब्जी बनती है,और सुखा कर पीसने के बाद रोटी और पुडी भी बनती है, महुए से लड्डू ,खीर और अन्य व्यंजन भी बनाये जाते है.इनसे शराब भी निकाली जाती है,जो स्वास्थ के लिए अची नहीं होती है,संस्कृत ग्रंथो में महुए की शराब को माध्वी कहा जाता है। फूलो का मौसम बीत जाने के बाद फल लगते। फूलो का गुदा भी खाया जाता है,जो मीठा होता है,बिच में गुठली की तरह बीज होता है,उस बीज से तेल निकाला जाता है.
महूआ का तेल बनाने की विधि:-
महुआ का तेल निकालने की कई परपम्परागत विधिया है ,जो क्षेत्र और जनजाति कुछ मित्रता के लिए हुए है,यहाँ जो विधि देखी वह दण्डकरण्य में रहने वाली हल बी जनजाति द्वारा प्रयोग है।
बीज को कई दिनों तक सुखाया जाता है,अच्छी तरह से सुख जाने पर धीमी आँच पर हलके से बुन लिया जाता है,इस चूरे को विशिष्ट तरीके से भाप दी जाती है ,एक डेकची में पानी भरकर को आंच पर रखकर उबला जाता है,उसी डेकची के ऊपर एक बर्तन में इस चूरे को रखकर भाप में पकाया जाता है.
पकाने के बाद फिर एक बार उसकी कुटाई होती है,इसके बाद उसे थैले में कसकर बंधा जाता है और उसकी छोटी पोटली जैसी बना ली जाती है ,ऐसी दो तीन पोटलिया को एक के ऊपर एक रखकर भारी लकड़ी के बने पारम्परिक उपकरण के कसकर दबाया जाता है,इस प्रकिर्या को बहुत तेजी से करना होता है,ताकि महुआ के बीजो को पका हुआ चुरा ठंडा ना हो जाए। दबाने की इस प्रकिर्या में काफी लगत लगती है,लेकिन महिलाये इसे फुर्ती और कुशलता के साथ अंजाम देती है ,दाबने की इस प्रकिर्या से जो तेल निकलता है,उस एक चौड़े मुँह वाले बर्तन में इकट्टा किया जाता है ,पोटली को दबाकर जिस उपकरण से तेल निकाला जाता है,वह लकड़ी का बना होता है,और लेवल- फूल- क्रूम के सिद्धांत पर काम करता है.
उपयोग – यह तेल आमतौर पर दिया जलाकर रौशनी करने के काम आता है,खाने के लिए पहले इस्तमाल किया जाता था , पर अब सोयाबीन तेल के हर जगह पहुंच जाने की वजह से परपम्परागत तेलों का इस्तेमाल कम होता है. त्वचा पर मालिश करने और साबुन बनाने के लिए भी इस्तेमाल होता है,तेल निकालने के बाद जो चूरा बचता है ,वो मवेशियों के खाने के काम अआता है ,जैविक खाद के रूप में भो इसका उपयोग किया जा सकता है.